बिहार का जिला गया धार्मिक दृष्टि से सिर्फ हिन्दूओं के लिए ही नही बल्कि बौद्ध धर्म के लोगो के लिए भी आदरणीय है। जहाँ एक ओर बौद्ध धर्म के मानने वाले इसे महात्मा बुद्ध का ज्ञान क्षेत्र मानते हैं वहीँ हिन्दूओ के लिए गया मोक्ष प्राप्ति का स्थान हैं। यही कारण है कि यहाँ रोज ही देश ही नही बल्कि विदेशों के भी कोने कोने से हिन्दू आकर अपने मृत सगे संबंधियों की आत्मा की शांति और मोक्ष की कामना से श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करते है l
गया को लेकर जो लोगो में ये आस्था का भाव है वो महज ऐसे ही नही है l जब गया के बारे में आप अध्ययन करते है और इसके अतीत में जाते है तब आपके सामने ऐसे ऐसे राज खुलके आते है जो आपको आश्चर्य से भर देते है और आप बहुत से ऐसे सवालों के चक्रव्यूह में फस जाते है जिनका जवाब आपको सिर्फ गया में ही मिल सकता है l
गया में ही पिंडदान क्यों
गया के बारे में गरूड़ पुराण में हमें पढने को मिलता है ‘गयाश्राद्धात् प्रमुच्यन्त पितरो भवसागरात्। गदाधरानुग्रहेण ते यान्ति परामां गतिम्।।
अर्थात गया में श्राद्ध करने मात्र से पितर यानी परिवार में जिनकी मृत्यु हो चुकी है वह संसार सागर से मुक्त होकर गदाधर यानी भगवान विष्णु की कृपा से उत्तम लोक में जाते हैं।
गया के बारे में गरूड़ पुराण यह भी कहा गया है कि यहां पिण्डदान करने मात्र से व्यक्ति की सात पीढ़ी और एक सौ कुल का उद्धार हो जाता है। गया तीर्थ के महत्व को भगवान राम ने भी स्वीकार किया है।
इसी सम्बन्ध में वायु पुराण में कहा गया है कि मीन, मेष, कन्या एवं कुंभ राशि में जब सूर्य होता है उस समय गया में पिण्ड दान करना बहुत ही उत्तम फलदायी होता है। इसी तरह मकर संक्रांति और ग्रहण के समय जो श्राद्ध और पिण्डदान किया जाता है वह श्राद्ध करने वाले और मृत व्यक्ति दोनों के लिए ही कल्याणी और उत्तम लोकों में स्थान दिलाने वाला होता है।